हमारे शहर का दस्तूर बाबा परेशाँ-हाल हर मज़दूर बाबा हुए ख़ल्वत-नशीं हैं लोग कामिल जो नाक़िस हैं वही मशहूर बाबा नहीं देखे किसी ने उन के चेहरे कहाँ ग़िल्माँ कहाँ है हूर बाबा चले हैं हिस्सा लेने दौड़ में फिर हमारे शहर के मा'ज़ूर बाबा मुझे याद आ रही है 'मुसहफ़ी' की ग़ज़ब थे 'मीर' भी मग़्फ़ूर बाबा