हमारे सीने के वस्त में और ही फ़ज़ा है वहाँ रुतें और हैं जहाँ ख़त्त-ए-इस्तवा है उमीद को ख़ौफ़ ख़ौफ़ को खा रही है ग़फ़लत ग़िज़ाई ज़ंजीर की तरह दिल का सिलसिला है हमारे रोने पे हँसने लगते हैं आने वाले हमारी दीवार-ए-गिर्या दीवार-ए-क़हक़हा है तमाम आलम फिरा हूँ पहुँचा कहीं नहीं हूँ पहुँच मिरी ना-रसाइयों की जगह जगह है दुआ नहीं क़हत में ज़हानत ही काम आई ये खेत मसनूई बारिशों से हरा हुआ है किधर किधर से बचाएँ सीने की शो'लगी को बदन के चारों तरफ़ ही क़ुतबैन की फ़ज़ा है हमारी आह-ओ-फ़ुग़ाँ किसी तक नहीं पहुँचती ख़ला में सौत-ओ-सदा की तर्सील मसअला है जुड़ा ही रहता है ख़ाकसारी से क़ल्ब-ए-रौशन क़मर हमेशा ज़मीन के गिर्द घूमता है ये गिर्या हासिल है इम्तिज़ाज-ए-निशात-ओ-ग़म का असास-ओ-तेज़ाब के अमल से नमक बना है मैं तुझ को माज़ी में जा के मुमकिन है देख पाऊँ बशर तजाज़ुब की लहर दरयाफ़्त कर चुका है गुनह पे आँसू बहा के हूँ बाग़-बाग़ 'शाहिद' मिरे सियह पानियों में सब्ज़ा उगा हुआ है