हमारी फ़िक्र भी ख़स्ता हमारे कार ग़लत हमारी जस्त ने बख़्शा हमें हिसार ग़लत कहीं ये क़ल्ब-ए-हवादिस की ताब ला न सके कहीं ये दिल ही न ले ले कोई क़रार ग़लत ये मेरा दिल है तमन्नाएँ पाल लेता है हुआ है इस पे भी साया कोई सवार ग़लत मुझे यक़ीं है न आएँगे मेरी तुर्बत पर बरा-ए-फ़ातिहा चुनिएगा कब मज़ार ग़लत ये किस ने अबरू-ए-ख़मदार से मुझे देखा कहाँ से आ गई हक़ में मिरे बहार ग़लत मिरे नसीब के क़ौसैन ने दिया तोहफ़ा कभी तो लैल-ए-मुसलसल कभी नहार ग़लत मैं अपनी औज का तुम को हिसाब क्या देता मिरी लकीर थी उलझी मिरा मदार ग़लत मैं अपने ज़ख़्म-ए-जिगर सोज़-ओ-साज़ क्यूँ लिक्खूँ हज़ार बार गिना फिर भी है शुमार ग़लत