हम्द-ए-ख़ुदा-ए-पाक ज़बाँ पर जो लाएँ हम या ना'त-ए-मुस्तफ़ा में अगर लब हिलाएँ हम शर्त-ए-अदब यही है कि यारो हज़ार बार मुश्क और गुलाब से ये दहन को धुलाएँ हम जिस बारगाह-ए-पाक का दरबाँ है जिब्रईल अपने बड़े नसीब वो दर तक भी जाएँ हम आ'माल-ए-बद हमारे भला क्या हमारा मुँह है बात शर्म की वहाँ क्या मुँह दिखलाएँ हम है ये बड़ा इरादा मुबारक मदीने में रौज़े के रू-ब-रू ये क़सीदा सुनाएँ हम