हमें महफ़िल में आँखों पर बिठाएँगे भला वो क्यूँ कि रस्म-ए-दोस्ती हम से निभाएँगे भला वो क्यूँ किया मख़्सूस है अहबाब का हल्क़ा उन्होंने अब यूँ हाल-ए-दिल हमें फिर से सुनाएँगे भला वो क्यूँ कभी थे वो हमारे राज़दाँ जाँ भी लुटाते थे हमारे राज़ सारे अब छुपाएँगे भला वो क्यूँ जो जीते जी हमें ज़िंदाँ में दफ़ना कर यूँ जाते हैं हमारी मौत पर आँसू बहाएँगे भला वो क्यूँ हमें रुस्वा किया था शहर से उस ने निकाला था मोहब्बत से 'महक' वापस बुलाएँगे भला वो क्यूँ