हमें पीने-पिलाने का मज़ा अब तक नहीं आया कि बज़्म-ए-मय में कोई पारसा अब तक नहीं आया सितम भी लुत्फ़ हो जाता है भोले-पन की बातों से तुझे ऐ जान अंदाज़-ए-जफ़ा अब तक नहीं आया दम-ए-आख़िर थे बालीं पे जो आने को वो आए भी तो हँस कर कह गए वक़्त-ए-दुआ अब तक नहीं आया सहर होते बुझाए कौन ऐ शम-ए-लहद तुझ को कोई झोंका नसीम-ए-सुब्ह का अब तक नहीं आया ख़ुदा जाने हुआ क्या कूचा-ए-जानाँ में दिल जा कर मिरा भूला हुआ भटका हुआ अब तक नहीं आया गया था कह के ये क़ासिद कि उल्टे पाँव आता हूँ कहाँ कम्बख़्त जा कर मर रहा अब तक नहीं आया जिसे तुम कोसते हो उम्र उस की और बढ़ती है तुम्हें सब कुछ तो आया कोसना अब तक नहीं आया सितम करना दग़ा करना कि वा'दे का वफ़ा करना बताओ क्या तुम्हें आया है क्या अब तक नहीं आया किसी ने कोई दुश्मन में छुपा डाला मिटा डाला गली तो आई उन का नक़्श-ए-पा अब तक नहीं आया ये क्या इंसाफ़ है सय्याद छोड़े क़ैद से मुझ को कि ऐसा कोई मुर्ग़-ए-ख़ुश-नवा अब तक नहीं आया बता दें आ गया क्या तुम को इस उठती जवानी में बता दें कान में चुपके से क्या अब तक नहीं आया बुतान-ए-नाज़नीं जब देखते हैं मुझ से कहते हैं तुम्हारी जान पर क़हर-ए-ख़ुदा अब तक नहीं आया किया हसरत से रुख़्सत सुब्ह के तारों को ये कह कि जिस का शाम से था आसरा अब तक नहीं आया ये ग़फ़लत है कि महशर में भी आँखें बंद हैं मेरी समझता हूँ यही रोज़-ए-जज़ा अब तक नहीं आया न फूटी कोई कोपल तक मिरी शाख़-ए-नशेमन में ख़िज़ाँ के बा'द मौसम दूसरा अब तक नहीं आया दिया हो तो दिया हो कुछ पयाम-ए-शौक़ आँखों ने मिरे लब पर तो हर्फ़-ए-मुद्दआ' अब तक नहीं आया इस उभरे उभरे जोबन पर यूँही वो बैठे रह जाते उन्हें उठती जवानी का मज़ा अब तक नहीं आया वो दिन आए मिरे सरकार अहल-ए-बज़्म से पूछें कहाँ है क्यूँ 'रियाज़'-ए-ख़ुश-नवा अब तक नहीं आया