हमें सफ़र की अज़िय्यत से फिर गुज़रना है तुम्हारे शहर में फ़िक्र ओ नज़र पे पहरा है सज़ा के तौर पे मैं दोस्तों से मिलता हूँ असर शिकस्त-पसंदी का मुझ पे गहरा है वो एक लख़्त ख़लाओं में घूरते रहना किसी तवील मसाफ़त का पेश-ख़ेमा है ये और बात कि तुम भी यहाँ के शहरी हो जो मैं ने तुम को सुनाया था मेरा क़िस्सा है हम अपने शानों पे फिरते हैं क़त्ल-गाह लिए ख़ुद अपने क़त्ल की साज़िश हमारा विर्सा है