हमेशा जीतने वाला कभी तो हारा भी हो मोहब्बतों में कोई फ़ैसला हमारा भी हो मैं इस किनारे पे बैठा हूँ और सोचता हूँ मिरी गिरफ़्त में दरिया का वो किनारा भी हो ये शहर छोड़ना मुश्किल तो है मगर सर-ए-दस्त किसी को मेरा ठहरना यहाँ गवारा भी हो मुझे क़ुबूल नहीं तोहमत-ए-दुआ और वो ये चाहता है किसी ने उसे पुकारा भी हो मैं आफ़्ताब नहीं हूँ मगर कभी 'शहज़ाद' मिरे मदार में उस शख़्स का सितारा भी हो