हमीं हैं जिन्हें इश्क़ है बाँकपन से हमीं हैं जो उलझें हैं दार-ओ-रसन से किसी जिस्म का हुस्न है पैरहन से कहीं पैरहन ख़ुद सजा है बदन से ये माना है जन्नत बहुत ख़ूबसूरत मगर ख़ूबसूरत न होगी वतन से गुलों ने चुराया तिरा हुस्न-ए-रंगीं मोअ'त्तर फ़ज़ा है तिरे पैरहन से न तेशा न सर काम आया वफ़ा में सदा आ रही है ये जू-ए-लबन से तड़प कर न मर जाए बुलबुल क़फ़स में न ले जाए गुल कोई गुलचीं चमन से रक़ीबों से सरगर्म है उन की महफ़िल फ़क़त 'नूर' है दूर उस अंजुमन से