हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब हमीं इस दौर में बर्बाद हैं आबाद हैं सबब ख़ाकसारों से भला इतनी कुदूरत क्या है एक दामन के झटकने में तो बर्बाद हैं सबब शिकवा अब क्या है तुझे कहते न थे हम ऐ दिल जिन के तलवार से अबरू हैं वो जल्लाद हैं सब उक़्दे खुल जाएँगे अग़्यार के रफ़्ता रफ़्ता हमीं ज़ुल्फ़ों के गिरफ़्तार हैं आज़ाद हैं सब उन हसीनों में बुरा किस को कहूँ किस को भला मुझे दीवाना बनाने को जो तय्यार हैं सब आस्तीं दीदा-ए-गिर्यां से जुदा हो क्यूँकर नहीं भूले किसी चितवन के मज़े याद हैं सब किस के काकुल नहीं शानों पे खुले रहते है दाम-बर-दोश मिरे वास्ते सय्याद हैं सबब कोई सुनता नहीं फ़रियाद किसी के बुलबुल कहने को जितने हैं गुल-गोश बे-फ़रियाद हैं सब दश्त-गर्दी ही दवा मुझ को अगर सौदा है ख़ार जंगल के नहीं नश्तर-ए-फ़स्साद हैं सब शम्अ' रोती है तो इस बज़्म में सर कटता है दादरस कोई नहीं बर-सर-ए-बेदाद हैं सब न तो रफ़्तार बुरे और न गुफ़्तार बुरे जितनी उस शब में अदाएँ हैं ख़ुदा-दाद हैं सब सदक़े रुख़ पर हूँ कि क़ुर्बान क़द-ए-ज़ेबा पर ग़ैरत-ए-गुल में ये बुत ग़ैरत-ए-शमशाद हैं सब निस्बतन फ़र्क़ नहीं एक हैं अबना-ए-जहाँ एक है उन की और इक बाप की औलाद हैं सब उस की दीवार से सर फोड़ रहे हैं आशिक़ रश्क-ए-शीरीं है वो बुत ग़ैरत-ए-फ़रहाद हैं सब दिल-लगी किस से करूँ 'बहर' कि जी छूट गया मेहर-पेशा नहीं कोई सितम-ईजाद हैं सब