हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ मंज़िल-ए-दोस्त पे दो अश्क बहा लूँ तो चलूँ हर क़दम पर हैं मिरे दिल को हज़ारों उलझाओ दामन-ए-सब्र को काँटों से छुड़ा लूँ तो चलूँ मुझ सा कौन आएगा तजदीद-ए-मकारिम के लिए दश्त-ए-इम्काँ की ज़रा ख़ाक उड़ा लूँ तो चलूँ बस ग़नीमत है ये शीराज़ा-ए-लम्हात-ए-बहार धूम से जश्न-ए-ख़राबात मना लूँ तो चलूँ पाँव ज़ख़्मी हुए और दूर है मंज़िल 'वासिफ़' ख़ून-ए-असलाफ़ की अज़्मत को जगा लूँ तो चलूँ