हाँ कभी है कभी है यार नहीं हाँ नहीं का कुछ ए'तिबार नहीं सर में सौदा अबस है दुनिया का घर कुछ ऐसा ये पाएदार नहीं क़ातिल अबरू से तेरे डरते हैं वर्ना तेग़ ऐसी आब्दार नहीं संग-ए-तिफ़्लाँ से इस लिए डर है सर-ए-शोरीदा पाएदार नहीं चले जाते हैं रह-रवान-ए-अदम साथ वालों का ए'तिबार नहीं फिर किसी ज़ुल्फ़ का हुआ सौदा बे-सबब दिल को इंतिशार नहीं हम पिएँ ख़ुद पिलाए गर साक़ी अह्द याँ ऐसा उस्तुवार नहीं उन के क़ौल-ओ-क़रार के हाथों कौन दिल है जो बे-क़रार नहीं देख कर तुझ को है ये सन्नाटा दिल भी पहलू में बे-क़रार नहीं मशअ'ल-ए-दाग़ साथ जाएगी ख़ौफ़-ए-तारीकी-ए-मज़ार नहीं देखें क्या हो मैं हूँ बरहना-पा बे-ख़लिश कोई नोक-ए-ख़ार नहीं किस के कहने से तर्क-ए-मय 'तालिब' ख़ाम है शैख़ पुख़्ता-कार नहीं