हंगामा क्यूँ बपा है ज़रा बाम पर से देख शोले बुलंद होते हैं ये किस के घर से देख बिखरें न ये ज़मीं पे कहीं चश्म-ए-तर से देख पलकों तक आ गए हैं जो चल कर जिगर से देख ऐ दोस्त पैरवी-ए-कलीमाना है अबस जल्वों को उस के तू निगहा-ए-मो'तबर से देख यूँ सर उठा के देख न तू जानिब-ए-फ़लक ये ताज-ए-तमकनत न गिरे तेरे सर से देख इस तरह है ग़मों को मिरे दिल से रस्म-ओ-राह जिस तरह रब्त रखते हैं साए शजर के देख अपनी नज़र से देख तही-दस्ती-ए-सदफ़ दरिया का ज़र्फ़ क्या है ये चश्म-ए-गुहर से देख इंसान हादसात से कितना क़रीब है तू भी ज़रा निकल के कभी अपने घर से देख 'आजिज़' ये क़ौल अपने बुज़ुर्गों का याद रख रस्ता कभी न छोड़ना दुश्मन के डर से देख