हंगामा शहर-ए-जाँ में मुसलसल लहू से है एहसास में है जितनी भी हलचल लहू से है शादाबियाँ उसी की बदौलत हैं रूह में है रेगज़ार-ए-जिस्म जो जल-थल लहू से है साबित हुआ कि देता है तू ये भी आग सी साबित हुआ ये सोज़-ए-मुसलसल लहू से है ख़ाके सभी अधूरे हैं सब नक़्श ना-तमाम दुनिया में जो भी कुछ है मुकम्मल लहू से है क़ाएम है उस से आरिज़-ए-गुलगूँ की दिलकशी रंगीं रुख़-ए-हयात का आँचल लहू से है दानिश्वरी लहू से मिली एक शख़्स को इक और शख़्स है कि जो पागल लहू से है 'राही' वगरना ज़ेहन है तारीकियों का घर रौशन ख़याल-ओ-फ़िक्र की मशअ'ल लहू से है