हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर उन सब ने रो दिया मुझे बीमार देख कर सब हम-सफ़ीर छोड़ के तन्हा चले गए कुंज-ए-क़फ़स में मुझ को गिरफ़्तार देख कर क्या जाने क्या ग़ज़ब है ये जादू भरी निगाह ग़श कर गया हूँ मैं जिसे यक बार देख कर ख़ून-ए-जिगर के साथ कहीं जी चला न जाए रोना ज़रा तू दीदा-ए-ख़ूँ-बार देख कर अपने 'हवस' पे जब से कि तू मेहरबाँ हुआ जलते हैं रात दिन उसे अग़्यार देख कर