हर बे-ज़बाँ को शोला-नवा कह लिया करो यारो सुकूत ही को सदा कह लिया करो ख़ुद को फ़रेब दो कि न हो तल्ख़ ज़िंदगी हर संग-दिल को जान-ए-वफ़ा कह लिया करो गर चाहते हो ख़ुश रहें कुछ बंदगान-ए-ख़ास जितने सनम हैं उन को ख़ुदा कह लिया करो यारो ये दौर ज़ोफ़-ए-बसारत का दौर है आँधी उठे तो उस को घटा कह लिया करो इंसान का अगर क़द-ओ-क़ामत न बढ़ सके तुम इस को नक़्स-ए-आब-ओ-हवा कह लिया करो अपने लिए अब एक ही राह-ए-नजात है हर ज़ुल्म को रज़ा-ए-ख़ुदा कह लिया करो ले दे के अब यही है निशान-ए-ज़िया 'क़तील' जब दिल जले तो इस को दिया कह लिया करो