हर बुलबुल-ए-मुश्ताक़ तह-ए-दाम है अब भी फूलों की तलब बाइ'स-ए-आलाम है अब भी इक उम्र से गो रस्म-ए-जुनूँ छोड़ चुका है दीवाना तिरे शहर में बदनाम है अब भी कहने को तो हर सम्त बहारों का समाँ है दिल अपना तो अफ़्सुर्दा सर-ए-शाम है अब भी मुद्दत से किए बैठे हैं गो तर्क-ए-मोहब्बत हाँ बाइ'स-ए-तस्कीन वही नाम है अब भी किस आँख से नज़्ज़ारा करें लाला-ओ-गुल का तक़्दीस-ए-नज़र बाइ'स-ए-इल्ज़ाम है अब भी कुछ तुझ को ख़बर है भी उसे भूलने वाले 'बेताब' के होंटों पे तिरा नाम है अब भी