हर चीज़ से मावरा ख़ुदा है दुनिया का अजीब सिलसिला है क्या आए नज़र कि रास्तों में सदियों का ग़ुबार उड़ रहा है जितनी कि क़रीब-तर है दुनिया उतना ही तवील फ़ासला है अल्फ़ाज़ में बंद हैं मआनी उनवान-ए-किताब-ए-दिल खुला है काँटों में गुलाब खिल रहे हैं ज़ेहनों में अलाव जल रहा है