हर दौर में हर अहद में ताबिंदा रहेंगे हम अहल-ए-मोहब्बत हैं दरख़्शंदा रहेंगे जो नक़्श-ए-क़दम अहल-ए-जुनूँ छोड़ गए हैं तुम लाख मिटाओगे वो पाइंदा रहेंगे तुम ने वो सितम ढाए हैं अरबाब-ए-वफ़ा पर तारीख़ के औराक़ भी शर्मिंदा रहेंगे हालात जो माज़ी में थे वो आज नहीं हैं दरपेश जो अब हैं वो न आइंदा रहेंगे ढल जाएगा इक रोज़ तिरे हुस्न का सूरज हम आज भी ताबिंदा हैं ताबिंदा रहेंगे रंग अपना बदलता है ज़माना तो बदल ले हम अज़्मत-ए-रफ़्ता के नुमाइंदा रहेंगे सब नाम-ओ-निशाँ दहर से मिट जाएँगे 'राही' कुछ नाम हैं ऐसे भी जो पाइंदा रहेंगे