हर दिल जो है बेताब तो हर इक आँख भरी है इंसान पे सच-मुच कोई उफ़्ताद पड़ी है रह-रौ भी वही और वही राहबरी भी मंज़िल का पता है न कहीं राह मिली है मुद्दत से रही फ़र्श तिरी राहगुज़र में तब जा के सितारों से कहीं आँख लड़ी है ऐसा भी कहीं देखा है मय-ख़ाने का दस्तूर हर चश्म है लबरेज़ हर इक जाम तही है रुख़्सार-ए-बहाराँ पे चमकती हुई सुर्ख़ी कहती है कि गुलशन में अभी सुब्ह हुई है समझा है तू ज़र्रे को फ़क़त ज़र्रा-ए-नाचीज़ छोटी सी ये दुनिया है जो सूरज से बड़ी है दुनिया में कोई अहल-ए-नज़र ही नहीं बाक़ी कोताह-निगाही है तिरी कम-नज़री है मदहोश फ़ज़ा मस्त हवा होश की मत पूछ वारफ़्तगी-ए-शौक़ है इक गुम-शुदगी है काँटों पे चले हैं तो कहीं फूल खिले हैं फूलों से मिले हैं तो बड़ी चोट लगी है फिर सोच लो इक बार अभी वक़्त है 'जावेद' शिकवे में कुछ अँदेशा-ए-ख़ातिर-शिकनी है