हर इक कमाल को देखा जो हम ने रू ब-ज़वाल सिसक के रह गई सीने में आरज़ू-ए-कमाल हम अपनी डूबती क़द्रों के साथ डूब गए मिलेगी अब तो किताबों में बस हमारी मिसाल हुए अना के दिखावे से लोग सर अफ़राज़ अना ने सर को उठा कर किया हमें पामाल ज़रा सी उम्र में किस किस का हल तलाश करें खड़े हैं रास्ता रोके हुए हज़ार सवाल मिरे ख़ुलूस का यारों ने आसरा ले कर किया है ख़ूब मिरी दोस्ती का इस्तेहसाल बुझा बुझा सा यही दिल है इस शबाब की राख रगों में दौड़ रही थी जो आतिश-ए-सय्याल मिले वो लम्हा जिसे अपना कह सकें 'कैफ़ी' गुज़र रहे हैं इसी जुस्तुजू में माह-ओ-साल