हर एक ख़्वाब सो गया ख़याल जागते रहे जवाब पी लिए मगर सवाल जागते रहे हमारी पुतलियों पे ख़्वाब अपना बोझ रख गए हम एक शब नहीं कि माह ओ साल जागते रहे गुज़ार के वो हिजरतें अजीब ज़ख़्म दे गईं मिले भी उस के बाद पर मलाल जागते रहे बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया फिर इस के बाद तो कई जमाल जागते रहे कमाल-ए-बे-कली सही अजीब रतजगे किए हमारे जिस्म नींद से निढाल जागते रहे कोई जवाज़ ढूँडते ख़याल ही नहीं रहा तमाम उम्र यूँही बे-ख़याल जागते रहे