हर एक लम्हा तबीअत पे बार है, क्या है तुम्हारा ग़म कि ग़म-ए-रोज़गार है, क्या है वो हम पे आज बहुत जल्वा-बार है क्या है अब इस अदा में अदावत है, प्यार है, क्या है सितम तो ये है कि इस अहद-ए-जब्र में भी यहाँ मलूल है न कोई बे-क़रार है, क्या है हज़ार रंग-ब-दामाँ सही मगर दुनिया बस एक सिलसिला-ए-एतिबार है, क्या है फ़ज़ा चमन की है ऐसी कि कुछ नहीं खुलता ख़िज़ाँ की रुत है कि फ़स्ल-ए-बहार है, क्या है सुना है रात तो कब की गुज़र गई लेकिन हमें सहर का अभी इंतिज़ार है, क्या है चमन हमारा है लेकिन चमन हमारा नहीं न बेबसी न कोई इख़्तियार है, क्या है बताए जाते हैं उनवाँ नए नए 'निकहत' मगर तमाशा वही वही बार बार है, क्या है