हर इक महाज़ को तन्हा सँभाले बैठे हैं हम एक दिल में कई रोग पाले बैठे हैं अभी न ज़ोर दिखाए ये कह दो आँधी से अभी हम अपने इरादों को टाले बैठे हैं सितमगरों ने बहारों पे कर लिया क़ब्ज़ा चमन को ख़ून-ए-जिगर देने वाले बैठे हैं बताएँ क्या कि हमारे ही रहनुमा अब तो हमारी राह में ख़ंजर निकाले बैठे हैं ज़मीं पे अपना बसेरा तो है मगर 'क़ैसर' निगाहें चाँद-सितारों पे डाले बैठे हैं