हर इक ने कहा क्यूँ तुझे आराम न आया सुनते रहे हम लब पे तिरा नाम न आया दीवाने को तकती हैं तिरे शहर की गलियाँ निकला तो इधर लौट के बद-नाम न आया मत पूछ कि हम ज़ब्त की किस राह से गुज़रे ये देख कि तुझ पर कोई इल्ज़ाम न आया क्या जानिए क्या बीत गई दिन के सफ़र में वो मुंतज़िर-ए-शाम सर-ए-शाम न आया ये तिश्नगियाँ कल भी थीं और आज भी 'ज़ैदी' उस होंट का साया भी मिरे काम न आया