हर एक पल मुझे दुख दर्द बे-शुमार मिले ख़ुदा कभी तो मेरे दिल को भी क़रार मिले ज़माना दुश्मन-ए-जाँ हो गया ये ग़म है मगर मिरा नसीब कि ख़ंजर ब-दस्त-ए-यार मिले क्या होगी इस से भी बढ़ कर किसी की महरूमी जिसे नसीब में ता-मर्ग इंतिज़ार मिले ऐ आलमीन के राज़िक़ बता कहाँ जाऊँ मिरे वतन में मुझे जब न रोज़गार मिले रहे वो ज़िंदा या मर जाए फ़र्क़ क्या है जिसे घुटन ज़माने में और क़ब्र में फ़िशार मिले मैं मुस्कुराता मगर दी न अश्क ने मोहलत ख़ुशी जब एक मिली साथ ग़म हज़ार मिले जो झूट बोले हुकूमत से दाद ले जाए जो बोले सच उसे तोहफ़े में औज-ए-दार मिले फ़लक पे लिक्खूँ तिरा नाम मेरे नाम के साथ अगर कभी मुझे तारों पर इख़्तियार मिले मैं जिन से दूर ही रहना पसंद करता था वो ज़िंदगी की मसाफ़त में बार बार मिले ख़ुशी से 'अब्र' हर इक रब्त मुंक़ता' कर दो अगर कही कोई दुनिया में सोगवार मिले