हर एक राह से आगे है ख़्वाब की मंज़िल तिरे हुज़ूर से बढ़ कर ग़याब की मंज़िल नहीं है आप ही मक़्सूद अपना जौहर-ए-ज़ात कि आफ़्ताब नहीं आफ़्ताब की मंज़िल कुछ ऐसा रंज दिया बचपने की उल्फ़त ने फिर उस के बा'द न आई शबाब की मंज़िल मुसाफ़िरों को बराबर नहीं ज़मान-ओ-मकाँ हवा का एक क़दम और हबाब की मंज़िल मोहब्बतों के ये लम्हे दरेग़ क्यूँ कीजे भुगत ही लेंगे जो आई हिसाब की मंज़िल मिलेगी बादा-गुसारों को शैख़ क्या जाने गुनह की राह से हो कर सवाब की मंज़िल मसाम नाच रहे हैं मुआ'मलत के लिए गुज़र गई है सवाल-ओ-जवाब की मंज़िल मिली जो आस तो सब मरहले हुए आसाँ नहीं है कोई भी मंज़िल सराब की मंज़िल मिज़ाज-ए-दर्द को आसूदगी से रास करो कहाँ मिलेगी तुम्हें इज़्तिराब की मंज़िल रह-ए-जुनूँ में तलब के सिवा नहीं 'सय्यद' अगरचे तय हो ख़ुदा की किताब की मंज़िल