हर एक रात को महताब देखने के लिए मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए न जाने शहर में किस किस से झूट बोलूँगा मैं घर के फूलों को शादाब देखने के लिए इसी लिए मैं किसी और का न हो जाऊँ मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए किसी नज़र में तो रह जाए आख़िरी मंज़र कोई तो हो मुझे ग़र्क़ाब देखने के लिए अजीब सा है बहाना मगर तुम आ जाना हमारे गाँव का सैलाब देखने के लिए पड़ोसियों ने ग़लत रंग दे दिया 'अज़हर' वो छत पे आया था महताब देखने के लिए