हर इक रंज-ओ-ग़म से सुबुक-दोश हो जा उसे याद कर और मदहोश हो जा नज़र उस की चाहे तो नज़रें झुका ले है कुछ अर्ज़ करना तो ख़ामोश हो जा सुकूँ के लिए बे-सुकूँ दिल को मत कर परेशानियों से हम-आग़ोश हो जा निकल पारसाई के ख़तरों से बाहर तू मय-नोश है तो बला-नोश हो जा है तश्हीर का सब से अच्छा ये नुस्ख़ा अचानक किसी रोज़ रू-पोश हो जा