हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं तमाम उम्र ही आशुफ़्ता-सर रहा हूँ मैं क़दम क़दम पे वहाँ क़ुर्बतें थीं और यहाँ हुजूम-ए-शहर से तन्हा गुज़र रहा हूँ मैं पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया कि अपने साथ बहुत मुख़्तसर रहा हूँ मैं ये कैसी रिफ़अतें आईना-ए-निगाह में हैं किसी सितारे पे जैसे उतर रहा हूँ मैं मैं रौशनी ही की वहदानियत का क़ाइल हूँ मोहब्बतों ही का पैग़ाम-बर रहा हूँ मैं मैं शब-परस्त नहीं हूँ यही ख़ता है मिरी अदा-शनास-ए-जमाल-ए-सहर रहा हूँ मैं यहाँ बस एक नया तजरबा हुआ 'फ़ारिग़' कि लम्हे लम्हे को महसूस कर रहा हूँ मैं