हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है ये ज़िंदगी तो कोई इंतिक़ाम हो गई है जब आई मौत तो राहत की साँस ली हम ने कि साँस लेने की ज़हमत तमाम हो गई है किसी से गुफ़्तुगू करने को जी नहीं करता मिरी ख़मोशी ही मेरा कलाम हो गई है परिंदे होते तो डाली पे लौट भी जाते हमें न याद दिलाओ कि शाम हो गई है इधर तो रोज़ के मरने से ही नहीं फ़ुर्सत उधर वो ज़िंदगी फ़ुर्सत का काम हो गई है हज़ारों आँसुओं के बअ'द इक ज़रा सी हँसी किसी ग़रीब की मेहनत का दाम हो गई है बना न पाई कभी आदतों को अपना ग़ुलाम ये ज़िंदगी तो ख़ुद उन की ग़ुलाम हो गई है पुरानी यादों ने जब भी लगा लिया फेरा इस उजड़े दिल में बड़ी धूम-धाम हो गई है