हर एक सम्त है इक जीत हार का मौसम अब एक ख़्वाब सा लगता है प्यार का मौसम इसी को गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कहते हैं कभी ख़िज़ाँ है कभी है बहार का मौसम चमन में धूम मची है कि फ़स्ल-ए-गुल आई यही है दामन-ए-सद-तार-तार का मौसम अब उस को याद दिलाने का फ़ाएदा ही नहीं वो भूल भी चुका क़ौल-ओ-क़रार का मौसम हर इक शिकस्त पे जोश-ए-अमल में शिद्दत ला मिटेगा दीदा-ए-ख़ूनाबा-बार का मौसम न आने दे कभी पा-ए-सबात में लग़्ज़िश सदा मिला है किसे इख़्तियार का मौसम रिहाई मिलती है यारो न जान जाती है अज़ाब-ए-जान है ये इंतिज़ार का मौसम दराज़ कितनी ही शब हो गुज़र ही जाएगी पलट के आएगा दीदार-ए-यार का मौसम जो लौह-ए-दिल पे लगाने चले हो दाग़ पे दाग़ कभी तो आएगा उन के शुमार का मौसम है अब ये हाल उरूस-उल-बिलाद का 'अज़हर' ठहर गया है वहीं गीर-ओ-दार का मौसम