हर ग़म ग़म-ए-ताज़ा है ये शादाब है सीना ऐसा भी तो इस दौर में नायाब है सीना हंगाम-ए-ख़मीदन भी ये सर ख़म नहीं होता यूँ कहने को गंजीना-ए-आदाब है सीना जैसे कि न आई है न आएगी कोई और हर सुब्ह को इस तौर से बेताब है सीना बातिन पे नज़र कीजे तो इक बहर है ज़ख़्ख़ार ज़ाहिर पे नज़र कीजे तो पायाब है सीना कब दश्त-ओ-जबल कोह-ओ-दमन राह में आएँ हो सोज़ जो सीने में तो सैलाब है सीना ज़ाहिर में तो जो कुछ है वो अस्बाब-ए-जहाँ है बातिन में यही चश्मा-ए-अस्बाब है सीना आँखें तो बरसती हैं बरसती ही रहेंगी क्यूँ डूब न जाएँ कि तह-ए-आब है सीना जिस बाब में आसार-ए-ग़ज़ालान-ए-अजम हैं तौरेत का क़ुरआन का वो बाब है सीना हर-दम मिरे होंटों से छलकती है गुलाबी बेताब सी इक मौज-ए-मय-ए-नाब है सीना बस्ती में अजब दौलत-ए-बेदार हैं आँखें वीराने में इक दौलत-ए-नायाब है सीना बेदारी में सोया हुआ क़तरे में तलातुम और ख़्वाब में जागा हुआ सैलाब है सीना है रंज का आलम भी कोई ऐश का आलम हर-लहज़ा अजब आलम-ए-सद-ख़्वाब है सीना आलम है अगर राज़ तो ये शीशा-ए-जम है आलम है अगर साज़ तो मिज़राब है सीना अल्लाह ग़नी कहिए कि अल्लाह ग़नी है वो ताब अता की है जहाँ-ताब है सीना