हर घड़ी मुझ को बे-क़रार न कर ज़िंदगी मेरी सोगवार न कर जिस के साहिल का कुछ पता ही नहीं ऐसी कश्ती को इख़्तियार न कर बे-ख़ुदी मेरी बे-ख़ुदी न रहे इतना एहसान ग़म-गुसार न कर इस क़दर मुझ पे इलतिफ़ात-ओ-करम मेरे मोहसिन तू शर्मसार न कर पाक कर ले हवस से दिल पहले कौन कहता है तुझ को प्यार न कर अपने वा'दे का रख भरम ऐ दोस्त किश्त-ए-उम्मीद रेग-ज़ार न कर ख़ैर-ख़्वाही के नाम पर हरगिज़ मेरे ऐबों का इश्तिहार न कर आदमी है तो आदमी ही रह आदमियत को दाग़दार न कर जो 'सहर' दिल से भूल बैठा हो तज़्किरा उस का बार बार न कर