हर घड़ी रहता है अब ख़दशा मुझे पी न जाए वक़्त का दरिया मुझे गो हक़ीक़त था मगर ऐ ज़िंदगी ख़्वाब सा तू ने सदा देखा मुझे जब भी मिलता हूँ वही चेहरा लिए बद-दुआ देता है आईना मुझे छोड़ आया हूँ सुलगती रेत में जाने क्या कहता हो नक़्श-ए-पा मुझे उस के दिल में ख़ुद वफ़ा ना-पैद थी दोस्ती की भीक क्या देता मुझे डूबती बुझती हुई आवाज़ हूँ साथ वालो ग़ौर से सुनना मुझे