हर इक तहरीर नफ़रत की मिटाना चाहता हूँ मैं

हर इक तहरीर नफ़रत की मिटाना चाहता हूँ मैं
मोहब्बत ही मोहब्बत का फ़साना चाहता हूँ मैं

फ़सीलें नफ़रतों की सब गिराना चाहता हूँ मैं
अमीर-ए-शहर का लेकिन इशारा चाहता हूँ मैं

अँधेरी रात में सूरज उगाना चाहता हूँ मैं
चराग़ों में लहू अपना जलाना चाहता हूँ मैं

फ़लक छूते मकानों की हवस तुम को मुबारक हो
फ़क़त सर को छुपाने का ठिकाना चाहता हूँ मैं

फ़सादों से किसी भी क़ौम को अज़्मत नहीं मिलती
अमीर-ए-क़ौम को इतना बताना चाहता हूँ मैं

नई तहज़ीब का कोई गिला-शिकवा नहीं मुझ को
मगर अपने बुज़ुर्गों का ज़माना चाहता हूँ मैं

कोई सूरत नहीं हालात के तब्दील होने की
अगरचे खुल के हँसना मुस्कुराना चाहता हूँ मैं

जहाँ 'एजाज़' हर चेहरे पे शादाबी नज़र आए
वही मौसम वही मंज़र सुहाना चाहता हूँ मैं


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