हर जगह बंदिश-ए-आदाब की पर्वा न करें महरम-ए-राज़ से बेहतर है कि पर्दा न करें इश्क़ की कोहना रिवायात को रुस्वा न करें बात तो ये है सर-ए-दार भी लब वा न करें मौत भी सामने आ जाए तो पर्वा न करें जाँ-ब-कफ़ दिल को मिसाल-ए-दिल-ए-परवाना करें दिल पे हिर्स-ओ-हसद-ए-बादिया-पैमा न करें इस से बेहतर है कि शग़्ल-ए-मय-ओ-पैमाना करें पुर्सिश-ए-ग़म से मिरे ग़म को दो-बाला न करें ये करम आज से आइंदा दोबारा न करें उठने लगता है तुम्हें देख के मौहूम सा दर्द आज से आप मिरे सामने आया न करें दर्द उठता है अगर चारागरों को ढूँडें दर्द-ए-उल्फ़त है तो फिर फ़िक्र-ए-मुदावा न करें वक़्त के हाथ में है खोटे खरे की तस्दीक़ आप अच्छे हैं तो अच्छाई का दा'वा न करें लग न जाए रुख़-ए-गुल-रंग को अपनी ही नज़र अपनी सूरत कभी आईने में देखा न करें छेड़ देती है ये आवाज़-ए-हज़ीं रूह के तार दम-ए-रुख़्सत लब-ए-गुलरेज़ को गोया न करें दिल-ओ-ईमाँ तो नहीं हाँ मगर ऐ अहल-ए-सितम जान हाज़िर है जो मंज़ूर ये नज़राना करें राज़-ए-सर-बस्ता है दिल और ये बेहतर है कि 'राज़' पर्दा हम चेहरा-ए-हस्ती से उठाया न करें