हर जगह नज़र आया साहिब-ए-नज़र तन्हा क़ल्ब में सदफ़ के भी देखा है गुहर तन्हा बुझ सकेगी कितनों की प्यास ख़ून से मेरे बे-शुमार तेग़ें हैं और मेरा सर तन्हा फ़ैज़ कुछ तिरा भी था बख़्शिश-ए-जुनूँ भी थी इक हुजूम था पीछे हम चले जिधर तन्हा मेहर-ओ-मह खिलाए बे-इंतिहा से रिश्ता है क्यों समझता है अपने आप को बशर तन्हा सैर चाँद तारों की साथियों मुबारक हो रह गया क़फ़स में अब मैं शिकस्ता-पर तन्हा एक अपना आलम ख़ुद है बना लिया हम ने साथ में रही दुनिया हम रहे मगर तन्हा थी सलीब काँधों पर जा रहे थे मक़्तल को साथ थे बहुत अपने सब रहे मगर तन्हा मंज़िलें जुदा सब की रहगुज़र अलग सब के रह गया है दुनिया में अपनी हर बशर तन्हा किस को फ़िक्र थी मेरी नर्ग़ा-ए-हवादिस में मुज़्तरिब दिखाई दी तेरी इक नज़र तन्हा