हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए इंसाँ अगर हो दीदा-ए-बीना लिए हुए कैफ़-ए-निगाह सेहर-ए-बयाँ मस्ती-ए-ख़िराम हम आए उन की बज़्म से क्या क्या लिए हुए नक़्श-ओ-निगार-ए-दहर की रानाइयाँ न पूछ दर-पर्दा हैं किसी का सरापा लिए हुए बे-लाग मैं गुज़र गया हर ख़ूब ओ ज़िश्त से अपनी नज़र में ज़ौक़-ए-तमाशा लिए हुए राह-ए-हयात में न मिला कोई हम-सफ़र तन्हा चला हूँ नाम किसी का लिए हुए बर्बाद-ए-इल्तिफ़ात की तक़दीर देखना वो आए भी तो रंजिश बे-जा लिए हुए हस्ती के हादसों के मुक़ाबिल डटा रहा मैं उन की इक नज़र का सहारा लिए हुए 'रैहनी'-ए-हज़ीं है ख़िज़ाँ में ग़ज़ल-सरा रंगीनी-ए-बहार का सौदा लिए हुए