हर क़दम पर नई दीवार उठाने वाले बड़े आए मुझे तहज़ीब सिखाने वाले तू ही हर रिंद का क़िबला हो ज़रूरी तो नहीं शहर में कम नहीं आँखों से पिलाने वाले कोई इस ख़्वाब की ता'बीर बता सकता है रोज़ आते हैं मुझे ख़्वाब डराने वाले जिस को देखो है वही पैकर-ए-आलाम यहाँ खो गए जाने कहाँ हँसने हँसाने वाले वक़्त के आगे सिपर डाले हुए कौन हैं ये हम तो थे वक़्त की बुनियाद हिलाने वाले सात पर्दों में तुझे ढूँढ ही लेंगे 'रख़्शाँ' चैन से रहने कहाँ देंगे ज़माने वाले