हर काम का वक़्त मुक़र्रर है हर काम को वक़्त पे होना है किस बात की आख़िर जल्दी है किस बात का फिर ये रोना है दुनिया के मसाइब झेलने को मालिक ने बनाया है जीवन आराम भला फिर काहे का फिर काहे ये सोना है बे-मक़्सद जीना कहते हैं हैवान के जैसा जीने को इंसाँ के लिए तो ये जीवन यारो पुर-ख़ार बिछौना है दुश्वार सही रस्ता लेकिन चलना है हमें मंज़िल की तरफ़ मंज़िल की तलब में 'आकिफ़' जी कुछ पाना है कुछ खोना है