हर लहज़ा मकीं दिल में तिरी याद रहेगी बस्ती ये उजड़ने पे भी आबाद रहेगी है हस्ती-ए-आशिक़ का बस इतना ही फ़साना बर्बाद थी बर्बाद है बर्बाद रहेगी है इश्क़ वो नेमत जो ख़रीदी नहीं जाती ये शय है ख़ुदा-दाद ख़ुदा-दाद रहेगी वो आए भी तो ज़ब्त से लब हिल न सकेंगे फ़रियाद मिरी तिश्ना-ए-फ़रियाद रहेगी ये हुस्न-ए-सितम-कोश सितम-कोश है कब तक कब तक ये नज़र बानी-ए-बेदाद रहेगी वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का सँवारे न सँवरना वो उन के बिगड़ने की अदा याद रहेगी