हर मोड़ को चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र कहो बीते हुए दिनों को ग़ुबार-ए-सफ़र कहो ख़ूँ-गश्ता आरज़ू को कहो शाम-ए-मय-कदा दिल की जराहतों को चमन की सहर कहो हर रहगुज़र पे करता हूँ ज़ंजीर का क़यास चाहो तो तुम उसे भी जुनूँ का असर कहो मेरी मता-ए-दर्द यही ज़िंदगी तो है ना-मो'तबर कहो कि उसे मो'तबर कहो ये भी उरूज-ए-रंग का इक मो'जिज़ा सही फूलों की ताज़गी को फ़रोग़-ए-शरर कहो दानिश-वरान-ए-हाल का 'ताबाँ' है मशवरा हर मंज़र-ए-जहाँ को फ़रेब-ए-नज़र कहो