हर नफ़स इक मुस्तक़िल फ़रियाद है कितनी पुर-ग़म इश्क़ की रूदाद है घट रही हैं मेरे दिल की क़ुव्वतें अब ये शायद आख़िरी फ़रियाद है हो गई शायद कि अब तकमील-ए-इश्क़ वर्ना क्यूँ शोर-ए-मुबारकबाद है जिस्म पाबंद-ए-तअ'य्युन हो तो हो रूह तो हर क़ैद से आज़ाद है फिर कहाँ गुलशन में वो आसूदगी आशियाँ जब वक़्फ़-ए-बर्क़-ओ-बाद है देखिए अंजाम-ए-कार-ए-काएनात दिल मिरा फिर माइल-ए-फ़रियाद है जिस में 'साक़िब' था वो मुझ से हम-कनार मुझ को वो मंज़र अभी तक याद है