हर-नफ़स तज़्किरा-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता करते हैं घर में बैठे हुए हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कुछ इस अंदाज़ से वो मुझ से जफ़ा करते हैं लोग दुनिया के समझते हैं वफ़ा करते हैं दिल की दुनिया में हमेशा जो बसा करते हैं शाद रखते हैं न आबाद किया करते हैं उस के अंदाज़-ओ-अदा साफ़ कहा करते हैं तीर वो हैं कि जो आँखों से चला करते हैं कभी इबरत कभी हसरत का बना कर ख़ाका आप मिट्टी मिरी बर्बाद किया करते हैं ज़िंदगी क्या है मोहब्बत में न हो जो बर्बाद तुझ पे जो मरते नहीं ख़ाक जिया करते हैं दिल मिरा बाग़ है उस गुल की मोहब्बत में 'क़दीर' अब मिरे सीने में भी फूल खिला करते हैं