हर पल जो काटती है मुझे धार ही तो है 'इकराम' अपनी साँस भी तलवार ही तो है ऊँची इमारतों के नगर में मिरे लिए जा-ए-पनाह साया-ए-दीवार ही तो है हटती है सामने से मिरे कब ये देखिए अपनी अना भी राह की दीवार ही तो है रद्दी के भाव बेचने निकले हुए हैं लोग ये ज़िंदगी पढ़ा हुआ अख़बार ही तो है