हर राह अपनी राहगुज़र है मुसाफ़िरो मौहूम फिर भी अपना सफ़र है मुसाफ़िरो मुझ से ही मिलता-जुलता कोई शख़्स था यहाँ मुझ को बताओ अब वो किधर है मुसाफ़िरो जलती हुई हवाओं से हर शय जली मगर शादाब मेरे ग़म का शजर है मुसाफ़िरो मिलता बहुत है दिल से चलो दम लें अब वहीं आगे जो एक उजड़ा नगर है मुसाफ़िरो बस्ती उदास रास्ते चुप शहर में सुकूत ये किस के क़ाफ़िले का असर है मुसाफ़िरो पुर-नूर एक चेहरा है पूछो तो उस से क्यों दिल बे-नियाज़-ए-नूर-ए-सहर है मुसाफ़िरो अपने सफ़र का क़िस्सा सुनाता 'शुऐब' भी किस को मगर किसी की ख़बर है मुसाफ़िरो