हर शय है पुर-मलाल बड़ी तेज़ धूप है हर लब पे है सवाल बड़ी तेज़ धूप है चकरा के गिर न जाऊँ मैं इस तेज़ धूप में मुझ को ज़रा सँभाल बड़ी तेज़ धूप है दे हुक्म बादलों को ख़याबाँ-नशीन हूँ जाम-ओ-सुबू उछाल बड़ी तेज़ धूप है मुमकिन है अब्र-ए-रहमत-ए-यज़्दाँ बरस पड़े ज़ुल्फ़ों की छाँव डाल बड़ी तेज़ धूप है अब शहर-ए-आरज़ू में वो रानाइयाँ कहाँ हैं गुल-कदे निढाल बड़ी तेज़ धूप है समझी है जिस को साया-ए-उम्मीद अक़्ल-ए-ख़ाम 'साग़र' का है ख़याल बड़ी तेज़ धूप है