हर शय वही नहीं है जो परछाइयों में है इस के सिवा कुछ और भी गहराइयों में है आईना जिस से टूट के बे-आब हो गया वो अक्स-ए-बे-नवा भी तमाशाइयों में है फ़ुर्सत मिले तो मैं भी कोई मर्सिया लिखूँ इक दश्त-ए-कर्बला मिरी तन्हाइयों में है किस शहर में तलाश करें रिश्ता-ए-वफ़ा सुनते तो हैं पुरानी शनासाइयों में है दरिया के ज़ोर-ओ-शोर पे बातें हज़ार हों पानी मगर वही है जो गहराइयों में है घुल जाए शे'र में तो ज़मीं आसमाँ बने वो हुस्न-ए-ला-ज़वाल जो सच्चाइयों में है बेकार उस को अहल-ए-वफ़ा में गिना गया 'नामी' कहाँ से आप के शैदाइयों में है