हर सू मौसम नूर पे था जब मीलादों सत-सँगों का था झंकार पे राग बसंती सूफ़ी सुन्नत मलँगों का घर घर नचने नाच रहे हैं महानगर के तालों पर गाँव के बारह-मासों में दम टूट गया मरदंगों का मेरे अहद के बच्चे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं अमन की बगिया में है अब तो हर पल मौसम दंगों का क्या ख़ुश-मर्ज़ी थी लोगों पर लोगाँ जीते मरते थे दिल वालों की बस्ती में अब क़ब्ज़ा है मन-तंगों का मुल्क मुल्क दुर्योधन महशर-सामानी पर आमादा नील गगन बनता जाए मैदान सितारा जंगों का राजाओं का देस था घर घर हाथी झूमा करते थे आज वही भारत 'रहमानी' मुल्क है भूखों नंगों का